अमेरिका और भारत के बीच नागरिक उपयोग के लिए परमाणु ऊर्जा विकसित करने के लिए सहयोग करने का समझौता हो गया है । राजनीतिक मामलों के विदेश अवर सचिव निकोलस बर्न्स ने अमेरिका-भारत परमाणु समझौते पर टिप्पणी कीः
“शायद यह एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण पहल है, जिस पर भारत और अमेरिका के 60 वर्षों के संबंधों के दौरान परस्पर सहमति हुई है । यह वास्तव में ऐतिहासिक है । यह दोनों देशों के बीच बढ़ती हुई वैश्विक भागीदारी का प्रतीकात्मक उदाहरण बन चुका है । ”
समझौते के तहत, अमेरिका भारत को परमाणु ईंधन का सामरिक भंडार बनाने और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ईंधन बाज़ार में ज़्यादा पहुंच हासिल करने में मदद करेगा । श्री बर्न्स ने जोर दे कर कहा कि यह समझौता किसी भी तरह भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम की सहायता नहीं करता । उन्होंने कहा, ”हम भारत के रणनीतिक कार्यक्रम के विकास के लिए सहायता नहीं दे सकते, पर हम उस कार्यक्रम को नागरिक पक्ष से अलग कर सकते हैं और हम भारत को परमाणु ऊर्जा पर केवल तीन प्रतिशत निर्भर देश से आगे ले जाकर भविष्य में बहुत अधिक निर्भर होने में मदद कर सकते हैं ।”
विदेश अवर सचिव बर्न्स कहते हैं कि इस समझौते से ” अंतर्राष्ट्रीय परमाणु अप्रसार प्रणाली मजबूत होती हैः”
“यह समझौता परमाणु नियमों का पालन न करने वाली ईरान जैसी सरकारों के लिए भी महत्वपूर्ण संदेश है । यह संदेश भेजता है कि अगर परमाणु अप्रसार के संबंध में आप जिम्मेदार आचरण करेंगे और नियमों का पालन करेंगे तो आपको दंडित नहीं किया जाएगा, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय परमाणु व्यापार में और अधिक भागीदारी के लिए आमंत्रित किया जाएगा । उत्तर कोरिया के विपरीत, भारत ने अतीत में परमाणु प्रसार नहीं किया है । भारत अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सुरक्षा के दिशा-निर्देशों के तहत अपना निरीक्षण कराने के लिए तैयार है, जबकि ईरान ऐसा नहीं कर रहा है । और भारत ने अपने परमाणु उत्तरदायित्वों का उल्लंघन नहीं किया है, जैसा कि ईरान ने किया है और अब भी कर रहा है ।”
समझौता लागू होने से पहले कई कदम उठाए जाने हैं । भारत को अपने परमाणु संयंत्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करनी होगी । भारत को परमाणु सामग्री मुहैया कराने की अनुमति लेने के लिए अमेरिका को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप के 45 देशों की सर्वानुमति हासिल करनी होगी । और इस समझौते पर अमेरिकी कांग्रेस और भारतीय संसद की स्वीकृति भी अनिवार्य है ।
राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने कहा है कि यह समझौता ” भारत के साथ, जो विश्व का एक महत्वपूर्ण नेता है, हमारी गहरी भागीदारी में निरंतर जारी प्रगति की दिशा में एक और कदम है ।”