मेक्सिको में 200 लोगों की मृत्यु और दुनिया भर में हजारों लोगों को बीमार बनाने के लिये जिम्मेदार एचवनएनवन इन्फ्लूएन्जा-ए वाइरस से निपटने के लिये दुनिया भर के विशेषज्ञ लगे हुये हैं.
टेक्सॉस विश्वविद्यालय की आयुर्विज्ञान शाखा और गल्वेस्टन राष्ट्रीय प्रयोगशाला में चोटी के वैज्ञानिक वाइरस की उत्पत्ति और इसके असर को समझने की कोशिश कर रहे हैं...अमेरिका के रोग नियंत्रण और बचाव केंद्र में काम कर चुके थॉमस कियाजे़क उनमें से एक हैं.
वो कहते हैं कि वाइरस से जुड़े जिन रहस्यों की वो जांच कर रहे हैं...उनमें से एक ये भी है...कैसे इस वाइरस के संक्रमण से पूर्ण स्वस्थ और युवा लोगों की मृत्यु हो गई है. कियाज़ेक के अनुसार पिछली घटनाओं से संकेत मिलते हैं कि शरीर की बेहद शक्तिशाली प्रतिरक्षण प्रणाली रोग से लड़ने की कोशिश में रोगी के लिये ही जानलेवा बन जाती है.
अधिकांश मामलों में मृत्यु का कारण न्यूमोनिया बना...इसमें रोगी के फेफड़ों में तरल पदार्थ भर जाता है...ऐसा लगता है शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली ने संक्रमण से निपटने के लिये ऐसा किया होगा.
कुछ लोगों ने फ्लू का प्रसार रोकने के लिये मेक्सिको और अमेरिका में सबकुछ बंद कर देने के निर्णय का विरोध किया था लेकिन कियाज़ेक इसे सही मानते हैं.
कुछ जानकार मानते हैं कि स्कूल बंद करने जैसे कदम तब तक प्रभावी नहीं होंगे जबतक कि हम बच्चों को बाज़ार जैसी जगहों पर मिलने से नहीं रोकेंगे.
कियाज़ेक कहते हैं कि उत्तरी गोलार्ध में वाइरस देर से आया है...इसलिये एक स्थान पर रुकने की संभावना कम है. वो कहते हैं कि इस वाइरस को नये रूपों में विकसित होने से रोकने के लिये इसकी वैक्सीन विकसित करना जरूरी है...जिससे इस वर्ष के अंत या फिर अगले वर्ष के आरंभ में और भयावह महामारी को फैलने से रोका जा सके.
कियाज़ेक कहते हैं कि मॉस्क या नकाब पहुंचने से वाइरस के संक्रमण को पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता है...जरूरी है कि हम जल्दी- हाथों को धोयें और हाथों को चेहरे से दूर रखें. उनके अनुसार एन्टी-वॉइरल दवाइयां कारगर हो सकती हैं...लेकिन बिना संक्रमित हुये केवल बचाव के लिये इनका प्रयोग नहीं करना चाहिये...नहीं तो इन औषधियों का प्रभाव घट जायेगा.