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_Burma |
बर्मा के रोहिंग्या मुसलमान अभी भी सैन्य सत्ता के दमन के शिकार हैं । रोहिंग्या को बर्मा के लोगों की तरह बनाने के अभियान के तहत बर्मा की सरकार ने इस्लाम को मानने पर बंदिशें लगा दी हैं और रोहिंग्या पर बौद्ध धर्म स्वीकार करने का दबाव डाल रही है । बर्मा के अधिकारी कभी-कभी
कुरान के प्रकाशन एवं वितरण को भी रोकते हैं और हज यात्रा में रोहिंग्या की भागीदारी के सामने कठिनाइयां पैदा करते हैं । मस्जिदों में या तो ताला लगा दिया गया है, या बर्मा शासन ने उसे नष्ट कर दिया है ।
उत्तरी रेखाइन राज्य में रोहिंग्या हजार वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी बर्मा के सैन्य प्रशासक उन्हें नागरिक नहीं मानते । वे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा एवं शादी व जन्म-मृत्यु के पंजीकरण जैसे बुनियादी मामलों में भी उनके साथ भेदभाव करते हैं ।
करीब 10 लाख रोहिंग्या थाईलैंड भाग गए हैं । 1990 के दशक के रू में बांग्लादेश ने ढाई लाख रणार्थियों को जबरन वापस भेज दिया था । राष्ट्र संघ के अधिकारियों का कहना है कि मलेशिया में करीब 12,000 रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं अन्य 5 हजार रोहिंग्या बर्मा के भीतर विस्थापित हो गए हैं । बर्मा की सरकार ने उन्हें उनकी जमीनों से जबरन भगा दिया है ।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की मानवाधिकार रिपोर्ट में कहा गया है कि बर्मा के सुरक्षा बल रोहिंग्या एवं अन्य जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ हत्या, मार-पीट, यातना, बंधुआ मजदूरी और बलात्कार सहित अन्य अधिक गंभीर दमन कर रहे हैं ।
रोहिंग्या को मदद करने के लिए अमेरिका और राष्ट्र संघ ने पहचान-पत्र जारी करने के लिए एक कार्यक्रम चलाने की योजना बनाई है, जिससे जन्म एवं शादी के पंजी करण, स्कूल में दाखिले और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा की सुविधा आसान हो जाएगी । अमेरिकी एवं राष्ट्र संघ के अधिकारियों को आशा है कि ये कार्ड रोहिंग्या को बर्मा की नागरिकता के अपने अधिकार का दावा करने में मदद देंगे । बर्मा में यूएन हाईकमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज के मार्क रेपोर्ट ने कहा है कि ऐसे देश में, जहां दस्तावेज एवं अनुमति पत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं, पहचान-पत्र बहुत मायने रखता है ।
राजनीतिक मामलों के अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री निकोलस बर्न्स ने कहा है कि दुनिया को बर्मा के लोगों से मुंह नहीं फेरना चाहिए और प्रशासन को मानवीय सम्मान के हनन की अनुमति नहीं देनी चाहिए ।