जमात उद दावा के ख़िलाफ़ पाकिस्तानी कार्रवाई को अमेरिकी विशेषग्य एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं... उनके मुताबिक पाकिस्तान को भी आतंकवादियों से उतना ही ख़तरा है जितना की भारत को.... तेरेसिता शेफर पाकिस्तान में अमेरीका की पूर्व राजदूत रह चुकी हैं.... आजकल वो वाशिंगटन में सी एस आय एस नाम के विदेश नीती विश्लेषण से जुड़े संस्थान के लिए काम करती हैं. वो बताती हैं की ऐसा कदम पाकिस्तान के हित में है क्यूँ की पाकिस्तानी सरकार और सेना भी मानती है की जो आतंकवादी भारत में आतंकवाद फैला रहे हैं उनमे से कुछ पाकिस्तान में भी कारवाईयाँ कर रहे हैं. लेकिन साथ ही वो ये शंका भी व्यक्त करती हैं की पाकिस्तान सरकार लश्कर और जमात के ख़िलाफ़ किस हद तक कदम उठाने को तैयार होगी. उनका कहना है की पाकिस्तान में अन्धरूनी राजनीती को देखते हुए ऐसा कदम सरकार को मुश्किल में डाल सकता है.
वाशिंगटन में हेरिटेज फौंडेशन संस्थान में दक्षिण एशिया विशेषग्य और अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दक्षिण एशिया विभाग में काम कर चुकी लिसा कर्टिस भी इस राय से सहमत हैं. उनका कहना है की पाकिस्तान की अब तक की नीती ऎसी कारवाई को टालने की रही है. लेकिन अब वक्त आ गया है, की आतंकियों के ख़िलाफ़ सख्त से सख्त कदम उठाये जाए.
जानकार ये भी मानते हैं की अमेरिका ने पकिस्तान से साफ़ कहा था की वो हमलों में शामिल लोगों और संगठनों के ख़िलाफ़ सख्त कदम उठाये.लिसा कर्टिस के मुताबिक सभी अमेरिकी अधिकारी...जिन्होंने मुम्बई हमलों के बाद पाकिस्तान का दौरा किया...यही संदेश लेकर गए थे की कारवाई होनी चाहिए. अमेरिका ने इस मामले में पकड़े गए आतंकवादी कसाब से पूछताछ भी की थी और एफ बी आय ने अपने ख़ुद के सबूत भी पाकिस्तान को दिए थे. तेरेसिता शेफर भी मानती है, की इस बारे में अमेरिकी नीती बिल्कुल साफ़ रही है.
माना जा रहा है की इस कारवाई के पीछे अमेरिका के साथ ही अन्य देशों का अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी एक कारण हो सकता है.