![M.F. Husain, India's most famous artist, finishes off a canvas he painted together with Shah Rukh Khan, unseen, one of India's biggest movie stars, during a fund-raising auction in a central London's auction house, 7 Jun 2007](https://webarchive.library.unt.edu/eot2008/20090118032852im_/http://www.voanews.com/hindi/images/AP_India_MF_Husain_painting_stars_eng_195_7jun07.jpg) |
M.F. Husain, India's most famous artist, finishes off a canvas he painted together with Shah Rukh Khan, unseen, one of India's biggest movie stars, during a fund-raising auction in a central London's auction house, 7 Jun 2007 |
भारत की आधुनिक कला के कारोबार में तेजी देखी जा रही है । यह इस बात से पता चलता है कि धनी भारतीय पेंटिंग में अपने निवेश बढ़ा रहे हैं । भारत के विकसित हो रहे कला बाजार पर नई दिल्ली से अंजना पसरीचा की रिपोर्ट-
वर्ष 2005 में एक नीलामी के दौरान जब भारतीय कलाकार तैयब मेहती की एक पेंटिंग 10 लाख डॉलर में बिकी तो कहा गया कि यह एक अपवाद घटना है । किसी भारतीय कलाकार की कोई कलाकृति पहली बार इस कीमत में बिकी थी ।
उसके बाद से अब तक विभिन्न निलामियों में 20 से अधिक पेंटिंग 10-10 लाख डॉलर से अधिक कीमतों पर बिक चुके हैं । यह भारतीय कला बाजार में भारी उछाल का नजारा है ।
अरुण वढेरा दिल्ली में एक आर्ट गैलरी चलाते हैं । वे अंतर्राष्ट्रीय नीलामी समूह, क्रिस्टीज़ के सलाहकार हैं । उनका कहना है कि भारत एवं विदेशों में धनी भारतीयों की एक नई पीढ़ी की वजह से कला बाजार ने यह गति पकड़ी है ।
वढेरा कहते हैं- यह इस बात का संकेत है कि पहली बार ये भारतीय अपने पिता या दादा से अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे हैं । उस समय वह वक्त था, जब वे अपना व्यापार शुरू ही कर रहे थे ।
एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2000 के बाद कीमतें 20-गुना बढ़ गई हैं । सबसे अधिक बढ़त अंतिम दो वर्षों में हुई है । दर्जनों गैलरी, नीलामी समूह और वेबसाइट स्थापित हो गए हैं, जो जाने-माने आधुनिक कलाकारों और कम नामचीन सामयिक पेंटरों, दोनों के बढ़ते बाजार के कारोबार को अंजाम दे रहे हैं ।
कला विशेषज्ञों का कहना है कि यह बाजार उन लोगों की वजह से बढ़ना शुरू हुआ, जो सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व की अपनी भावना का इजहार करना चाहते थे
कला के डीलरों का कहना है कि यह रुचि अब भारतीय समुदाय के बाहर भी पैदा हो रही है । न्यूयॉर्क और हांगकांग में क्रिस्टीज़ ने हाल में भारतीय कलाकृतियों की नीलामी आयोजित की । इसमें भारी संख्या में विदेशी ग्राहकों ने खरीदारी की ।
इसमें कोई शक नहीं कि बिक्री तेजी से बढ़ रही है । वर्ष 2006 में इसका कारोबार 35 करोड़ डॉलर का था । यह इसके ठीक पहले साल की तुलना में दोगुना है । लेकिन भारतीय बाजार अभी भी 30 अरब डॉलर के वैश्विक कला बाजार का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है ।
कला विशेषज्ञ अरुण वढेरा कहते हैं कि भारतीय कला बाजार अभी भी एकदम शुरुआती दौर में है । वे इसकी तुलना भारत में सूचना तकनीक में उछाल की शुरुआत के समय से करते हैं ।
उन्होंने कहा- मैं नहीं समझता कि भारतीय कला अभी चरम के आसपास भी है, बल्कि यह कहना ठीक होगा कि यह अभी उसी मुकाम पर है, जिस मुकाम पर 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरू में सूचना तकनीक था । हमें अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है । ग्राहकों की संख्या काफी कम है । वैसे कलाकारों की भी खासी कमी है, जिन पर निवेश किया जा सकता है ।
कला के विशेषज्ञ भारतीय कला के कारोबार में तेजी की तुलना चीन से करते हैं । चीन में यह कारोबार कुछ ही साल पहले शुरू हुआ है । चीन में यह तेजी बढ़ती अर्थव्यवस्था और नए-नए अमीर हुए चीनी समुदाय की वजह से आई है ।