श्रीलंका में अमेरिकी राजदूत रॉबर्ट ब्लेक ने कहा कि इराक, अफगानिस्तान और अन्य स्थानों पर अमेरिका के अनुभव ने हमें सिखाया है कि आतंकवाद को केवल कानून लागू करके और सैन्य कार्रवाई से हराया नहीं जा सकता । राजदूत ब्लेक ने कहा कि इसीलिए अमेरिका और अन्य डोनर ग्रुप को-चेयर के देशों ने श्रीलंका की सरकार से इस विवाद का राजनीतिक समाधान संगठित श्रीलंका के दायरे में निकालने का अनुरोध किया है, जो श्रीलंका के सभी समुदायों की आकांक्षाओं को पूरा करे ।
श्रीलंकाई सरकार और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम या तमिल टाइगर्स, अलगाववादियों के बीच 25 वर्ष से ज्यादा समय से संघर्ष हो रहा है, जिसमें श्रीलंका में करीब 70,000 लोग मारे गए हैं । उत्तरी क्षेत्र में हाल में हुई लड़ाई में 2 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं और मानवाधिकार की स्थिति खराब है ।
उन्होंने कहा कि श्रीलंका के लिए आगे बढ़ने का एक रास्ता ऑल पार्टीज रीप्रजेंटेटिव कमिटी या सर्वदलीय प्रतिनिधि समिति का काम पूरा करना है, जिसमें उस संवैधानिक सुधार के 90 प्रतिशत प्रस्ताव पर सहमति हो चुकी है, जिसे ज्यादातर श्रीलंकाई बहुत आशाजनक मानते हैं । इस दस्तावेज पर, जो अभी तक उल्लेखनीय बाधा साबित हुआ है, देश की दो मुख्य सिंहली पार्टियों को सहमत होना है ।
मद्रास विश्वविद्यालय में दिये गए भाषण में राजदूत ब्लेक ने कहा कि सर्वदलीय प्रतिनिधि समिति के दस्तावेज पर सर्वानुमति बनाने में प्रगति न होने का एक कारण यह है कि श्रीलंका में कुछ लोग मानते हैं कि सरकार को पहले तमिल टाइगर्स को हराना चाहिए और फिर राजनीतिक हल निकालने का प्रयास करना चाहिए । उन्होंने कहा कि अमेरिका की राय है कि सरकार अगर राजनीतिक समाधान के अपने विचार के बारे में अभी बता दे तो वह लिट्टे को और अधिक अलग-थलग तथा कमजोर कर सकती है । इससे उत्तरी वान्नी जिले में दो लाख से ज्यादा आंतरिक विस्थापित लोगों को यह आश्वासन मिलेगा कि वे दक्षिण में जा सकते हैं और बेहतर भविष्य की कामना कर सकते हैं । इससे तमिल टाइगर्स का यह दावा भी गलत सिद्ध होगा कि वे श्रीलंकाई तमिलों के एकमात्र प्रतिनिधि हैं और देश में मौजूद तमिलों को तमिल टाइगर्स को पैसा न देने के लिए मनाने में मदद मिलेगी ।
राजदूत ब्लेक ने यह भी कहा कि अमेरिका का मानना है कि मानवाधिकार स्थिति, जो तमिलों के मामले में ज्यादा प्रभावित हुई है, में सुधार करने से जल्दी समझौता करने में मदद मिलेगी और तमिलों में यह भावना बढ़ेगी कि संगठित श्रीलंका में उनका भविष्य आशा से भरपूर और गरिमापूर्ण होगा ।