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राष्ट्र संघ ने
बर्मा में मानवाधिकार हनन के जारी रहने पर एक चिंताजनक रिपोर्ट जारी की है ।
अमेरिका रिपोर्ट के
उस निष्कर्ष से सहमत है कि बर्मा की सैन्य सत्ता द्वारा तैयार संविधान के मसौदे पर
जनमत संग्रह विश्वसनीय नहीं है । यह जनमत संग्रह भय और डराने-धमकाने के माहौल में
हुआ । शासन ने जनमत की प्रक्रिया की आलोचना को अपराध बना दिया और अभिव्यक्ति, एक
जगह जमा होने एवं संगठन बनाने के अधिकार पर कड़ी बंदिशें लगा दीं । इन बंदिशों ने
संविधान के मसौदे को एक सुविचारित फैसला बनाने के लिए बर्मा की जनता को मुक्त होकर
इस पर बहस करने से रोका ।
राष्ट्र संघ की
रिपोर्ट में कहा गया है कि बर्मा में कम-से-कम 1,900 राजनीतिक कैदी हैं । इसमें
सबसे चर्चित कैदी नोबेल पुरस्कार विजेता और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की नेता आंग
सान सू ची हैं । राष्ट्र संघ के अनुसार, बर्मा के अधिकतर राजनीतिक कैदियों को बेहद
खराब स्थितियों में जेल में बंद रखा गया है । उदाहरण के तौर पर लोकतंत्र-समर्थक
छात्र संगठन 88 जेनरेशन का सदस्य पाव ऊ टून को लें । खबर है कि जेल के दौरान उनकी
आंख में बुरी तरह संक्रमण हो गया । उन्होंने चिकित्सीय सहायता मांगी, लेकिन आरोप
है कि अधिकारियों ने उन्हें तत्काल यह मुहैया कराने से इन्कार कर दिया ।
अभी भी 10 लाख से
अधिक ऐसे लोग हैं, जिन्हें आपदा राहत नहीं मिली है, क्योंकि सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय
राहत को उन तक पहुंचने नहीं दिया है । अमेरिका अभी भी मानवीय आपदा के शिकार लोगों
को मदद करने के प्रति वचनबद्ध है और वह बर्मा की सैन्य सत्ता से अंतर्राष्ट्रीय
मानवीय राहतकर्मियों को जाने की इजाजत देने और तूफान प्रभावित क्षेत्रों तक राहत
पहुंचाने के अपने वायदे को पूरा करने की अपील कर रहा है ।
एमनेस्टी इंटरनेशनल
ने खबर दी है कि बर्मा के हजारों लोगों को सरकारी राहत शिविरों से जबरन भगा दिया
गया है और उन्हें अपने तबाह गांवों तक लौटने के लिए करीब 6,600 ज्यात (बर्मा की
मुद्रा) और दो बार थोड़ी मात्रा में चावल भर दे दिया है । अमेरिकी विदेश मंत्रालय
के प्रवक्ता शॉन मैककॉर्मेक ने कहा है कि पर्याप्त राहत सहायता के बगैर तूफान के
भुक्तभोगियों को बर्मा के दूसरे क्षेत्र में भेजने से वे और अधिक जोखिम की स्थिति
में चले जाएंगे ।
बर्मा की सरकार को
अंतर्राष्ट्रीय राहतकर्मियों को तूफान से पीड़ित तमाम लोगों तक पहुंचने की इजाजत
देने में तत्परता दिखानी पड़ेगी । अमेरिका अभी भी बर्मा की सैन्य सत्ता से तमाम
राजनीतिक बंदियों को रिहा करने एवं लोकतंत्र में बदलाव की दिशा में लोकतांत्रिक व
जातीय अल्पसंख्यक नेताओं से बातचीत शुरू करने की अपील कर रहा है ।