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10 जनवरी  2009 

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इस्राइल, हमास और ईरान
06/05/2008

Condoleezza Rice talks to reporters after Bilateral meeting with Indian external affairs minister, 24 Mar 2008
Condoleezza Rice
इस महीने एक यहूदी देश के रूप में इस्राइल की स्थापना की छठी वर्षगांठ है । वॉशिंगटन में इस मौके पर अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस ने इस्राइल को मिल रहे अमेरिकी समर्थन के बारे में अपने विचार व्यक्त किये । उन्होंने कहा-

“60 साल गुजर गए हैं, अमेरिकी प्रशासन- चाहे वे डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी के हों, उदार या पुरातनपंथी हों, सबों के बीच कई बातों पर मतभेद रहे हैं, लेकिन एक मामले में हमारी सरकार हमेशा एक रही- वह यह है कि हम अपने लोकतांत्रिक सहयोगी देश इस्राइल की स्वतंत्रता, उसके हितों और सुरक्षा के प्रति कटिबद्ध रहे हैं ।“

सुश्री राइस ने इस्राइली और फिलिस्तीनियों के बीच शांति के लिए अमेरिकी समर्थन को   दोहराया । इस शांति के स्थापित हो जाने के बाद इस्राइल और फिलिस्तीन दो लोकतांत्रिक देश बन जाएंगे और एक-दूसरे की बगल में शांति से रहेंगे । उन्होंने कहा कि हमास जैसे उग्रवादियों की वजह से इस लक्ष्य पर खतरा मंडरा रहा है । हमास ने राजनीति की जगह आतंकवाद का रास्ता चुना है । उन्होंने कहा-

“वे हिंसा का रास्ता छोड़ने से इन्कार कर रहे हैं, इस्राइल के अस्तित्व के अधिकार को मानने से इन्कार कर रहे हैं और इस्राइल के साथ पूर्व में हुए सभी समझौतों का आदर करने से इन्कार कर रहे हैं । लेकिन शायद सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि हमास के नेता लगातार एक वैसे ईरानी प्रशासन के योद्धा की भूमिका निभा रहे हैं, जो इस क्षेत्र को अस्थिर करने पर तुला हुआ है, परमाणु क्षमता हासिल करने पर आमादा है और इस्राइल को नष्ट करने की अपनी इच्छा का खुलेआम इजहार कर रहा है ।“

सुश्री राइस ने कहा कि मैं यह स्पष्ट कर दूं कि इस्राइली और फिलिस्तीनियों के बीच शांति स्थापित होने में हमारा बहुत बड़ा हित जुड़ा हुआ है । लेकिन मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि हम उन तमाम कार्रवाइयों की मुखालिफत करेंगे, जिससे इस्राइल की सुरक्षा में खलल पहुंचता है । हम पहले भी हमेशा ऐसा करते रहे हैं ।

सुश्री राइस ने कहा कि फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और प्रधानमंत्री सलाम फैयाद की वैध सरकार में आतंकवाद से लड़ने की इच्छाशक्ति और प्रभावी ढंग से शासन करने की इच्छा   है । लेकिन इन फिलिस्तीनी नेताओं को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मदद चाहिए । उन्हें सबसे अधिक मदद अपने सहयोगी देश अरबों का चाहिए, जिन्हें इस्राइल को यह बता देना चाहिए कि वे मानते हैं कि मध्य-पूर्व में उसकी एक सही जगह है । अरबों को ऐसा अभी करना चाहिए, बाद में    नहीं ।  

 

 

 

 

 

 

 


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