अफगानिस्तान की महिला फुटबॉल टीम ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान की महिला फुटबॉल टीम के साथ अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला । पाकिस्तान फुटबॉल महासंघ के एक प्रवक्ता अकबर वाहिदी ने कहा कि इस मैच का लक्ष्य सीमा के दोनों ओर फुटबॉल को लोकप्रिय बनाना है ।
अफगान टीम की कैप्टन 18-वर्षीय शमीला खोस्तानी ने ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन से कहा- जब मैं बच्ची थी, तो मैं हमेशा एक अच्छा फुटबॉलर बनने के सपने देखा करती थी, लेकिन दुर्भाग्यवश तालिबान के जमाने में मैं फ़ुटबॉल या कोई और खेल नहीं खेल पाई । फुटबॉल की महिला खिलाड़ियों को काबुल के उस खेल स्टेडियम में प्रशिक्षित किया गया, जहां कभी तालिबान सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाने, हाथ-पांव काटने और मौत की सजा देने का काम किया करता थे । टीम के कोच अब्दुल सबूर वलीजादाह ने कहा कि युवा महिलाओं के माता-पिता शुरू में नहीं चाहते थे कि उनकी लड़कियां फुटबॉल खेलें, लेकिन अब वे उनका उत्साह बढ़ा रहे हैं ।
अफगानिस्तान में इस समय लगभग 500 पंजीकृत महिला फुटबॉल खिलाड़ी हैं और लड़कियों के बीच खेलों की लोकप्रियता बढ़ रही है । जुलाई महीने में एक दिन के टूर्नामेंट में लड़कियों की आठ टीमों ने भाग लिया । इन खेलों में भाग लेने वाली एक 13 साल की लड़की महिला महमूदी ने कहा- इससे देश में हो रही प्रगति का पता चलता है । जब हम फुटबॉल खेलते हैं, तो यह देश की सेवा करने जैसा है और इससे पता चलता है कि देश की लड़कियां वह सब कर सकती हैं, जो देश के लड़के करते हैं । 16 साल की ज़ैनब फकोरी कहती हैं- मेरे लिए फुटबॉल का मतलब है, आजादी । इसका मतलब है कि हम जो चाहें, कर सकती हैं ।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने मानवाधिकार पर अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि शहरी क्षेत्रों में कई अफगानी महिलाएं उन्नति के रास्ते पर हैं, लेकिन गांवों और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के मानवाधिकार हनन के मामले अभी भी आम हैं । मानवाधिकार हनन के इन मामलों में घरेलू हिंसा, जबरन विवाह और इज्जत के लिए हत्या जैसी घटनाएं शामिल हैं । अभी भी इस्लामी उग्रवादी, पत्रकारिता में काम करने वाली महिलाओं, सरकार एवं अन्य पेशों से जुड़ी महिलाओं की हत्या कर रहे हैं, लड़कियों के स्कूलों को आग लगा दी जाती है और अध्यापिकाओं तथा छात्राओं की हत्या की जाती है । लेकिन अफगानिस्तान की युवा महिलाओं का इरादा अटल बना हुआ है । हाई स्कूल में पढ़ने वाली मरियम फ़ारी को आशा है कि वह कभी डॉक्टर बनेगी । वह कहती है- अगर लड़कियों को शिक्षा नहीं मिलेगी तो अफगानिस्तान के भविष्य का निर्माण कौन करेगा ।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय में लोकतंत्र, मानवाधिकार और श्रम मामलों की उप सहायक विदेश मंत्री एरिका बार्क्स-रगल्स ने कहा कि अमेरिका उन महिलाओं के साथ है, जो अपने मानवाधिकार की रक्षा के लिए उठ खड़ी हुई हैं :
“हम सरकार और सभ्य समाज, व्यापार समुदाय और आम लोगों में उनके साथ मिल कर काम करना चाहते हैं, जो सभी लोगों के अधिकारों का आदर करने वाले एक सभ्य, शांतिपूर्ण समाज के निर्माण का प्रयास कर रहे हैं, जो अपने सभी नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करता है ।”
सुश्री बार्क्स-रगल्स ने कहा कि “हम यह मानते हैं कि महिलाओं के अधिकार भी मानवाधिकारों की श्रेणी में आते हैं ।