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स्वतंत्रता के बारे में राष्ट्रपति बुश के विचार
07/06/2007

President Bush, left with Vaclav Klaus in Prague, 05 Jun 2007
President Bush, left with Vaclav Klaus in Prague, 05 Jun 2007
चेक रिपब्लिक के प्राग में आयोजित एक सम्मेलन में बोलते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने कहा है कि पूरी दुनिया के भिन्न विचार रखने वाले और लोकतांत्रिक कार्यकर्ता आपस में एकता के सूत्र में इसलिए बंधे हैं क्योंकि उन सभी में कभी न डिगने वाला पक्का इरादा है । राष्ट्रपति बुश ने कहा-

“स्वतंत्रता हर पुरुष, महिला और बच्चे का अधिकार है , इसको लेकर कोई समझौता नहीं हो सकता और इस दुनिया में स्थायी शांति  तभी बहाल हो सकती, जब सभी को स्वतंत्रता हो ।”

श्री बुश ने कहा कि स्वतंत्रता के माहौल को बढ़ावा देना स्वतंत्र देशों की नैतिक और व्यावहारिक दोनों जरूरतें है । उन्होंने कहा-

“वर्षों पहले रूसी असंतुष्ट नेता आंद्रे साखारोव ने आगाह किया था कि जिस देश में वहां के लोगों के अधिकारों का सम्मान नहीं होता, वह देश अपने पड़ोसियों के अधिकारों का सम्मान नहीं करेगा । इतिहास ने उन्हें सही साबित किया है । अपनी जनता के प्रति उत्तरदायी सरकारें एक-दूसरे पर हमले नहीं करतीं । लोकतांत्रिक देशों में बाहरी लोगों को उत्तरदायी ठहराने की जगह राजनीतिक प्रक्रिया से समस्याओं को हल किया जाता है ।”

श्री बुश ने कहा कि तानाशाही को समाप्त करने के लिए दमनकारी समाज को भीतर से कम महत्व देने वाली विवेक पर आधारित ताकतों की मदद करनी होगी । तानाशाही में जी रहे लोगों को यह बताने की जरूरत है कि उन्हें भूला नहीं गया है । उन्होंने कहा- 

“उत्तर कोरिया के लोग एक बंद समाज में जी रहे हैं । यहां विरोध के स्वर को बेरहमी से दबा दिया जाता है । उन्हें दक्षिण कोरिया के अपने भाइयों व बहनों से अलग कर दिया जाता है । ईरान के लोग अच्छे लोग हैं, जिन्हें अपना भविष्य खुद तय करने का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन कुछ मुट्ठी भर उग्रवादियों ने उन्हें इस अधिकार से वंचित कर रखा है । परमाणु हथियार बनाने की इन की कोशिश की वजह से यह देश विकास के रास्ते पर अग्रसर देशों के बीच अपनी सही जगह पाने से वंचित रहा है । तानाशाही के बीच जी रहे तमाम लोगों को मेरा संदेश है कि हम उनके दमनकारियों को कभी माफ नहीं करेंगे । हम उनकी आजादी के लिए हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे ।” 

राष्ट्रपति बुश ने कहा कि तानाशाही को समाप्त करने में सहायता का हमारा मकसद यह कतई नहीं है कि हम उन लोगों पर अपने मूल्य थोपेंगे, जिन पर उनका विश्वास नहीं है । सच यह है कि अपने मूल्यों को सिर्फ उग्रवादी, कट्टरवादी और तानाशाह ही दूसरों पर थोपते हैं ।


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