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भारत में धार्मिक हिंसा
04/10/2008

 

Ransacked Christian Church in the southern Indian city of Mangalore, 14 Sep 2008
Ransacked Christian Church in the southern Indian city of Mangalore, 14 Sep 2008
भारत के कई हिस्सों में धार्मिक हिंसा की समस्या बढ़ती जा रही है । अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट, 2008 के अनुसार, अल्पसंख्यक धार्मिक गुटों पर संगठित साम्प्रदायिक हमले किये गए हैं, विशेषकर उन राज्यों में, जहां हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी या बीजेपी का शासन है ।

उड़ीसा राज्य में, जहां गठबंधन सरकार का शासन है और जिसमें बीजेपी शामिल है, हिंदू चरमपंथियों ने कंधमाल जिले में क्रिसमस के अवकाश से पहले ईसाई ग्रामीणों और चर्चों पर हमले किये । करीब 100 चर्चों और ईसाई संस्थानों को क्षति पहुंचाई गई तथा 700 ईसाई घर तबाह कर दिये गए, जिसके कारण ग्रामीणों को भाग कर पास के जंगलों में जाना पड़ा ।

अगस्त में एक प्रमुख हिंदू पुजारी की हत्या के बाद और अधिक हिंसा हुई । कथित तौर पर हिंदू राष्ट्रवादी विश्व हिंदू परिषद संगठन के उग्रवादी युवा दल के नेतृत्व में भीड़ ने चर्चों और घरों में आग लगा दी, जिससे हजारों ईसाई बेघर हो गए, जिनमें से ज्यादातर अब भी शिविरों में हैं ।

इसके बाद ईसाई-विरोधी हमले मध्य भारत के राज्य मध्य प्रदेश और दक्षिण के कर्नाटक तथा केरल में और उत्तर में उत्तर प्रदेश में फैल गए । सबसे भयानक कुछ मामले कर्नाटक में हुए हैं, जहां इस साल के शुरू में हुए चुनावों में हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी, बीजेपी जीती थी । अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के अमेरिकी दूत जॉन हेनफोर्ड ने कहा कि यह हिंसा राजनीति से प्रेरित लगती है, विशेषकर इसलिए कि कुछ मामलों में हिंसा पुलिस द्वारा की गई है ।

दुर्भाग्य से, भारत में धार्मिक हिंसा पर सजा मिलने के मामले बहुत कम हैं । पिछले मार्च में राष्ट्र संघ के धार्मिक स्वतंत्रता के विशेष संवाददाता ने चेतावनी दी थी कि सजा न मिलने और साम्प्रदायिक तनावों का राजनीतिक लाभ उठाने के कारण भारत में और अधिक हिंसा होने का खतरा है ।

भारत में ईसाइयों पर हो रहे अत्याचारों से हिंदुओं और ईसाइयों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के लंबे इतिहास पर कालिख पुत गई है । राजदूत हेनफोर्ड ने कहा कि अमेरिका सभी पक्षों से हिंसा से दूर रहने और सरकारी अधिकारियों से पूरे भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने का और इस तरह भारत की राजनीतिक सहिष्णुता की दीर्घकालिक परंपरा को अक्षुण्ण रखने का अनुरोध करता है ।


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